
फिजां में फैले कैंसर पर चाबुक चलाने को तैयार सुप्रीम कोर्ट, मोबाइल टावर से निकलने वाला रेडिएशन से होता है खतरनाक
नई दिल्ली। बॉलीवुड अभिनेत्री जूही चावला की रेडिएशन (विकिरण) पर नियंत्रण की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर ली है। बता दें कि याचिका पहले बॉम्बे हाई कोर्ट में लंबित थी, याचिका को देश की सबसे बड़ी अदालत भेजा गया। अब कई याचिकाओं की सुनवाई एक साथ होगी। गौरतलब है कि टावर से निकलने वाले रेडिएशन के गंभीर मुद्दों को लेकर पिछले कई सालों से पत्रिका समूह आवाज उठाता रहा है। अलग-अलग माध्यम से जनता को जागरुक करता रहा है। पत्रिका की पहल से लोग जागरूक होते हुए टावर्स के विरोध में आगे आए।
खतरनाक रेडिएशन
मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन पर दुनिया भर में बहस चल रही हैं। लगातार शोध किए जा रहे हैं। रेडिएशन से होने वाले नुकसान को देखते हुए मोबाइल टावर्स को हटाने की मांग तेज हो गई है। हाल ही में ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज ने अपने शोधों का विश्लेषण किया। जिसमें पाया गया कि सरकार की तरफ से कराए गए शोध और अध्ययनों में मोबाइल रेडिएशन से ब्रेन ट्यूमर होने की आशंका ज्यादा है, जबकि मोबाइल इंडस्ट्री से जुड़ी कंपनियों जब ऐसे अध्यन करती हैं तो शोध के नतीजों में आशंका को कम बताया जाता है। बता दें कि ये विश्लेषण 22 अध्ययनों का किया गया। ये अध्ययन दुनियाभर में 1996 से 2016 के बीच किए गए। 48,452 लोगों पर किए गए अध्ययनों को आधार बनाया गया था।
24 घंटे रेडिएशन के साए में लोग
2004 में इजराइली शोधकर्ताओं एक शोध किया। जिसके बाद उन्होंने बताया कि जो लोग लंबे समय से स्थापित मोबाइल टावर के 350 मीटर के दायरे में रहते हैं, उन्हें कैंसर होने की आशंका चार गुना बढ़ जाती है। 2004 में जर्मन शोधकर्ताओं के अनुसार मोबाइल टावरों के 400 मीटर के दायरे में एक दशक से रह रहे लोगों में अन्य लोगों के मुकाबले कैंसर होने का अनुपात ज्यादा पाया जाता है। जानकारों का कहना है कि मोबइल से अधिक परेशानी उसके टॉवर्स से है। क्योंकि मोबाइल का इस्तेमाल हम लगातार नहीं करते, लेकिन टावर लगातार चौबीसों घंटे रेडिएशन फैलाते हैं। मोबाइल पर अगर हम घंटे भर बात करते हैं तो उससे हुए नुकसान की भरपाई के लिए हमें 23 घंटे मिल जाते हैं, जबकि टावर के पास रहने वाले उससे लगातार निकलने वाली तरंगों की जद में रहते हैं। विशेषज्ञ दावा करते हैं कि अगर घर के समाने टावर लगा है तो उसमें रहने वाले लोगों को 2-3 साल के अंदर सेहत से जुड़ी समस्याएं शुरू हो सकती हैं।
देश की सबसे बड़ी अदालत का ऐतिहासिक फैसला
वर्ष 2017 में ऐसा पहली बार हुआ था जब एक व्यक्ति की शिकायत पर हानिकारक रेडिएशन को आधार बना कोई मोबाइल टावर बंद किया गया हो। कैंसर पीड़ित की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 7 दिनों के भीतर एक मोबाइल टावर को बंद करने का आदेश दिया था। बता दें कि ग्वालियर के हरीश चंद तिवारी ऐसे पहले शख्स बने जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट को इस बात के लिए मना लिया था कि मोबाइल फोन टावर के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन से उन्हें कैंसर हुआ। दूरसंचार मंत्रालय ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर बताया था कि इस समय देश में 12 लाख से अधिक मोबाइल फोन टावर हैं। जिनमें से मात्र 212 टावरों में रेडिएशन तय सीमा से अधिक पाया गया. जिसके बाद कोर्ट ने सभी टावरों पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए थे कि मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर को पूरे तरीके से नियमों का पालन कराने के लिए समय सीमा निर्धारित की जाए। उल्लेखनीय है कि गत वर्ष दूरसंचार विभाग ने 'तरंग संचार' पोर्टल लॉन्च किया। जिसके माध्यम से आप पता लगा सकते हैं कि आप के इलाके में कितना रेडिएशन फैला हुआ है।
Updated on:
15 Sept 2018 12:32 pm
Published on:
15 Sept 2018 11:09 am
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